बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक) पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
१. 'कारके' - इस सूत्र द्वारा कारक का अधिकार कर कर्म आदि की संज्ञाएँ की गयी हैं।
२. 'कर्तुरीप्तिततमं कर्म' - वाक्य में प्रयुक्त क्रिया द्वारा कर्ता जिस पदार्थ को सबसे अधिक चाहता है, उसकी कर्म संज्ञा होती है अर्थात् वाक्य में प्रयुक्त पदार्थों में से कर्ता अपनी क्रिया के द्वारा जिस पदार्थ की सबसे अधिक इच्छा करता है उसे ही कर्म कहते हैं।
३. 'अनभिहिते' - इस सूत्र के अनुसार जहाँ पर कर्म अनिभिहित हो अर्थात् वहाँ पर भी प्रकृति सूत्र से कर्म कारक का विधान होता है।
४. 'अनुक्ते कर्मणि द्वितीया' - इस सूत्र से अनुक्त कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। उदाहरण - हरिं भजति।
५. 'तथायुक्त चानीप्सितम् ́ - उन पदार्थों की भी जो कर्ता द्वारा अनीसिप्तत (न चाहे हुए भी) होकर कर्ता के इष्टतम् पदार्थ की तरह ही क्रिया से जुड़े रहते हैं, कर्म संज्ञा होती है।
उदाहरण - ग्रामं गच्छन् तृणं स्पृशति।
६. 'अकथित च' - अपादान आदि के द्वारा अविवक्षित (जो करने के लिए इष्ट न हो) कारक अकथित कहलाता है अर्थात् जहाँ किसी पदार्थ से अपादान अभिकारकों का अर्थ प्रकट होता भी हो पर वक्ता उसका प्रयोग नहीं करना चाहता हो, तो वह कारक अविवक्षित कहलाता हैं और इस अविवक्षित कारक की भी वर्ग संज्ञा होती है। पर यह नियम निम्नलिखित कारिका में परिगणित धातुओं के लिए ही है -
दुह्याच्पच्दण्डरुधिप्रच्छिचिबूशासुजिमथ् मुषाम्।
कर्मयुक् स्यादकथितं तथा स्पानीदृकृष्णवहाम् ॥
उदाहरण - गां दोग्धि पपः।
७. 'अकर्मक धातुभियोगे देशः कालो भावो गन्तव्योऽध्वा च कर्मसंज्ञक इति वाच्यम्। अर्थात् अकर्मक धातुओं के योग में देश, काल, भाव तथा गन्तव्य पथ की भी कर्म संज्ञा होती है।
उदाहरण - कुरुन: स्वपिति, मासमास्ते, गोदोमास्ते, क्रोशमास्ते।
८. गतिबुद्धि प्रत्यवसानार्थशब्द कर्मकर्म काणामाणि कर्ता स णौ। अर्थात् गत्यर्थक (गम् या इण आदि), बुद्धियर्थक (ज्ञा, विद्, बुध आदि), प्रत्यवसानार्थक (भक्षणार्थक भक्ष, भुज आदि) शब्द कर्मक और अकर्मक धातुएँ (स्था, आमस् शीङ् आदि) धातुओं का अण्यन्तावस्था में जो कर्ता हो वह ण्यन्तावस्था में कर्म संज्ञक हो जाता है और फिर उससे द्वितीया विभक्ति होती है।
६. नीवहर्येने - वार्तिक के अनुसार नी तथा वह (ले जाना) क्रियाओं के अप्रेणार्थक के कर्ता को प्रेरणार्थक अवस्था में कर्म नहीं होता अपितु करण कारक होता है। उदाहरण - नापयति वाह्यति वाभारभत्येन।
१०. नियन्तृ कर्तकस्य वहेर निषेधः - अर्थात् उक्त वार्तिक द्वारा कर्म संज्ञा का निषेध वहाँ नहीं होगा। जहाँ 'वह' धातु का कर्ता नियन्ता होगा अर्थात् उसकी कर्म संज्ञा हो जाएगी।
उदाहरण - नापयति वाह्यति वाभारवाहपति रथ वाहन सूत्रः। यहाँ वाहान की कर्म संज्ञा का निषेद न होगा, द्वितीया विभक्ति हो जाएगी।
११. आदिखाद्योर्न - अर्थात् अद् और खाद् धातुओं के प्रयोज्य कर्ता की कर्म संज्ञा न होगी।
१२. 'मक्षेरहिंसार्थस्य न' वार्तिक के अनुसार - भक्ष् धातु का जब हिंसा के रूप में अर्थ नहीं होता है तो कर्त्ता को प्रेरणार्थक में कर्म संज्ञा नहीं होती है।
१३. 'जलपति प्रभृतीनामुपसंख्यानम्' अर्थात् जल्प आदि धातुओं के अण्यन्तावस्था के कर्ता ण्यन्तावस्था में कर्मसंज्ञक होते हैं।
उदाहरण - "पुत्र धर्म जल्पयति भाषयति वा।'
१४. दृशेश्च - नापयति वाह्यति वाभारदृश् धातु का अण्यन्तावस्था का कर्ता ण्यन्तावस्था के प्रयोग में कर्मसंज्ञक होती है। उदाहरण दर्शपति हरिं भक्तान्।
१५. शब्दायतेर्न - वार्तिक सूत्र से शब्दायति क्रिया के कर्ता की प्रेरणार्थक अवस्था में कर्म संज्ञा नहीं होगी।
उदाहरण - शब्दायति देवदत्तेन।
१६. हुक्रोरुयतरस्याम् - हृ (ले जाना) कृ (करना) धातुओं के अण्यन्तावस्था के कर्ता की ण्यन्तावस्था में विकल्प से कर्म संज्ञा होती है।
उदाहरण - हारयति कारयति वा भृत्यं भृत्येन वा कटम्।
१७. अधिशास्थानासरं कर्म - अधि उपसर्गपूर्वक शीङ स्था आस् इन धातुओं का आधार कर्म संज्ञक होता है।
१८. 'उपान्वध्याङ वस' - उप, अनु अधि आ पूर्वक वस् धातु के योग में आधार की कर्म संज्ञा होती है।
उपपद द्वितीया विभक्ति - उपपद विभक्ति किसी पद के योग में होती है। अतः यहाँ कुछ उपपद विभक्ति के नियम दिये जा रहे हैं।
१. उभसर्वतसोः कार्याधिगुपर्यदिषु त्रिषु। द्वितीयाऽऽम्रेडितान्तेषु ततोऽन्यत्डापि दृश्यते। अर्थात् तसिल् प्रत्यान्त उभ एवं सर्व शब्द के योग में द्वितीया विभक्ति करनी चाहिए। धिक् शब्द के योग में तथा उपरि आदि तीन शब्दों (उपर्युपरि अध्याधि, अधोऽधः) में द्वितीया होती है तथा इनसे अतिरिक्त स्थलों में भी द्वितीया विभक्ति देखी जाती है।
उदाहरण - उभयतः कृष्णं गेयः।
२. अभितः परितः समया निकषा हा प्रतियोगेऽपि - अर्थात् अभित परितः समया, निकषा हा और प्रति के योग में भी द्वितीया होती है।
उदाहरण - अभित कृष्णम् निफषं लंकाम्।
३. 'अन्तरान्तरेण युक्ते' - अर्थात् अन्तरा (बीच में) अन्तरेण (बिना) के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।
४. 'हीने' - हीनता को घोतित करने में अनु की कर्मप्रवचनीय संज्ञा होती है।
उदाहरण - अनु हरिम् सुराः।
५. 'लक्षणेत्थम्भूताख्यान भागीरसासु प्रतिपर्यनवः' - अर्थात् लक्षण इत्थंभूताख्यान भाग और वीत्सा अर्थों में प्रति, परि तथा अनु की कर्म प्रवचनीय संज्ञा होती है।
उदाहरण - वृक्षं वृक्षं परि, प्रति अनु. वा विद्योतेते विद्युत यह ज्ञापक लक्षण है, इस लक्षण को प्रकट करने वाले प्रति परि अनु की उक्त नियमानुसार कर्मप्रवचनीय संज्ञा होने से वृक्षम् में द्वितीया विभक्ति होती है।
६. अपि पदार्थ सम्भावनाऽन्ववसर्गार्गहसमुच्चयेषु - अर्थात् पदार्थ सम्भावना, अन्ववसर्ग गर्द्धा (निन्दा) तथा समुच्चय के अर्थ में अपि का प्रयोग होने पर 'अपि' की कर्मप्रवचनीय संज्ञा होती है।
७. 'कालाहवनोरन्यन्त संयोग' अर्थात् अत्यन्त संयोग होने पर काल और गन्तव्यं मार्ग को बतलाने वाले शब्द में द्वितीय विकसित का प्रयोग है।
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- प्रश्न- निम्नलिखित क्रियापदों की सूत्र निर्देशपूर्वक सिद्धिकीजिये।
- १. भू धातु
- २. पा धातु - (पीना) परस्मैपद
- ३. गम् (जाना) परस्मैपद
- ४. कृ
- (ख) सूत्रों की उदाहरण सहित व्याख्या (भ्वादिगणः)
- प्रश्न- निम्नलिखित की रूपसिद्धि प्रक्रिया कीजिये।
- प्रश्न- निम्नलिखित प्रयोगों की सूत्रानुसार प्रत्यय सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित नियम निर्देश पूर्वक तद्धित प्रत्यय लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित का सूत्र निर्देश पूर्वक प्रत्यय लिखिए।
- प्रश्न- भिवदेलिमाः सूत्रनिर्देशपूर्वक सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- स्तुत्यः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
- प्रश्न- साहदेवः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
- कर्त्ता कारक : प्रथमा विभक्ति - सूत्र व्याख्या एवं सिद्धि
- कर्म कारक : द्वितीया विभक्ति
- करणः कारकः तृतीया विभक्ति
- सम्प्रदान कारकः चतुर्थी विभक्तिः
- अपादानकारकः पञ्चमी विभक्ति
- सम्बन्धकारकः षष्ठी विभक्ति
- अधिकरणकारक : सप्तमी विभक्ति
- प्रश्न- समास शब्द का अर्थ एवं इनके भेद बताइए।
- प्रश्न- अथ समास और अव्ययीभाव समास की सिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक) पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- द्वन्द्व समास की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- अधिकरण कारक कितने प्रकार का होता है?
- प्रश्न- बहुव्रीहि समास की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- "अनेक मन्य पदार्थे" सूत्र की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
- प्रश्न- तत्पुरुष समास की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- केवल समास किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अव्ययीभाव समास का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- तत्पुरुष समास की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कर्मधारय समास लक्षण-उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- द्विगु समास किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं?
- प्रश्न- द्वन्द्व समास किसे कहते हैं?
- प्रश्न- समास में समस्त पद किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रथमा निर्दिष्टं समास उपर्सजनम् सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- तत्पुरुष समास के कितने भेद हैं?
- प्रश्न- अव्ययी भाव समास कितने अर्थों में होता है?
- प्रश्न- समुच्चय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'अन्वाचय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइये।
- प्रश्न- इतरेतर द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाहार द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरणपूर्वक समझाइये |
- प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
- प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति के प्रत्यक्ष मार्ग से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा की परिभाषा देते हुए उसके व्यापक एवं संकुचित रूपों पर विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- भाषा-विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भाषा-विज्ञान के क्षेत्र का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भाषाओं के आकृतिमूलक वर्गीकरण का आधार क्या है? इस सिद्धान्त के अनुसार भाषाएँ जिन वर्गों में विभक्त की आती हैं उनकी समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ कौन-कौन सी हैं? उनकी प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप मेंउल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय आर्य भाषाओं पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा देते हुए उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भाषा के आकृतिमूलक वर्गीकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अयोगात्मक भाषाओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- भाषा और बोली में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- मानव जीवन में भाषा के स्थान का निर्धारण कीजिए।
- प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संस्कृत भाषा के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- संस्कृत साहित्य के इतिहास के उद्देश्य व इसकी समकालीन प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन की मुख्य दिशाओं और प्रकारों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए किसी एक का ध्वनि नियम को सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भाषा परिवर्तन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैदिक भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैदिक संस्कृत पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- संस्कृत भाषा के स्वरूप के लोक व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के कारणों का वर्णन कीजिए।